पॉज़िट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी (PET): नाभिकीय भौतिकी और चिकित्सा विज्ञान का संगम
- bpsinghamu
- Oct 2, 2024
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एक प्रयोगात्मक नाभिकीय भौतिक विज्ञानी होने के नाते, मैंने सोचा कि आम जनता को नाभिकीय विज्ञान के एक महत्वपूर्ण अनुप्रयोग के बारे में बताया जाए, जिसे PET स्कैन के नाम से जाना जाता है।
अक्सर लोग नाभिकीय भौतिकी को खतरनाक समझते हैं, क्योंकि इससे जुड़े कुछ मिथक हैं। इन मिथकों को दूर करने और यह समझाने के लिए कि नाभिकीय भौतिकी समाज और मानव स्वास्थ्य की सेवा कर रही है, मैं आपको PET स्कैन के बारे में बताऊंगा। यह उपकरण उन्हीं सिद्धांतों पर आधारित होता है, जिनका उपयोग नाभिकीय विज्ञान में किया जाता है। यह जानना ज़रूरी है कि नाभिकीय भौतिकी के सिद्धांत और उपकरण, जैसे डिटेक्टर (detectors), आज हमारी स्वास्थ्य सेवाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
PET स्कैन क्या है?
PET (पॉज़िट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी) एक इमेजिंग तकनीक है जो शरीर के अंदर की गतिविधियों को देखने में मदद करती है। इसमें एक रेडियोधर्मी ट्रेसर का उपयोग होता है, जो शरीर में इंजेक्ट किया जाता है और उच्च चयापचय गतिविधि (metabolic activity) वाले क्षेत्रों में पहुँचता है। यह ट्रेसर विघटित (decay) होकर पॉज़िट्रॉन (positron) छोड़ता है, जो इलेक्ट्रॉनों (electrons) से मिलकर गामा किरणें उत्पन्न करता है। PET स्कैनर इन गामा किरणों को पकड़ता है और शरीर के भीतर की प्रक्रियाओं का विस्तृत नक्शा देता है।
PET स्कैन में इस्तेमाल ट्रेसर और उनका नाभिकीय महत्व
PET स्कैन में सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला ट्रेसर फ्लुओरोडिओक्सीग्लूकोज (FDG) है, जिसमें रेडियोधर्मी आइसोटोप फ्लोरीन-18 (¹⁸F) होता है। इसका अर्ध आयु लगभग 110 मिनट होता है और यह एक पॉज़िट्रॉन उत्सर्जक है। नाभिकीय भौतिकी के दृष्टिकोण से, फ्लोरीन-18 जैसे रेडियोन्यूक्लाइड्स का चयन उनकी उचित अर्ध आयु (half-life) और नियंत्रित विकिरण प्रक्रिया के कारण होता है। ये आइसोटोप पॉज़िट्रॉन उत्सर्जित करते हैं, और जब ये पॉज़िट्रॉन इलेक्ट्रॉनों से मिलते हैं, तो गामा किरणें उत्पन्न होती हैं, जिन्हें PET स्कैनर पकड़ता है। अन्य सामान्य ट्रेसरों में शामिल हैं:
कार्बन-11 (¹¹C): इसका उपयोग मस्तिष्क की गतिविधियों (brain activities) के अध्ययन और तंत्रिका विज्ञान (neuroscience) में किया जाता है। इसका अर्ध आयु लगभग 20 मिनट है।
नाइट्रोजन-13 (¹³N): इसका उपयोग हृदय की मेटाबॉलिक गतिविधियों की निगरानी में किया जाता है। इसका अर्ध आयु लगभग 10 मिनट है।
ऑक्सीजन-15 (¹⁵O): यह मस्तिष्क और हृदय में ऑक्सीजन मेटाबॉलिज्म की जांच में मदद करता है। इसका अर्ध आयु लगभग 2 मिनट है।
ये रेडियोन्यूक्लाइड्स नाभिकीय भौतिकी के सिद्धांतों पर आधारित होते हैं और शरीर के विशिष्ट हिस्सों की मेटाबॉलिक गतिविधियों का सही आकलन करने में मदद करते हैं।
PET स्कैन का विज्ञान: भौतिकी के सिद्धांत
PET स्कैन का कार्य विनाशकारी विकिरण (annihilation radiation) सिद्धांत पर आधारित है। जब एक पॉज़िट्रॉन एक इलेक्ट्रॉन से मिलता है, तो दोनों नष्ट हो जाते हैं और गामा किरणों का उत्सर्जन करते हैं। यह प्रक्रिया आइंस्टीन के E=mc² सिद्धांत का अद्भुत उदाहरण है, जहाँ द्रव्यमान ऊर्जा में परिवर्तित होता है। यह गामा विकिरण PET स्कैनर द्वारा पकड़ा जाता है, जिससे डॉक्टर शरीर के भीतर की चयापचय गतिविधियों (metabolic processes) को समझ सकते हैं।
चिकित्सा में PET स्कैन का महत्व
यह तकनीक कैंसर (cancer), हृदय रोग (heart disease) और मस्तिष्क विकारों (brain disorders) का निदान और निगरानी करने में मदद करती है। खासकर कैंसर के मामलों में, PET स्कैन उन क्षेत्रों की पहचान करता है जहाँ कैंसर कोशिकाएँ तेजी से बढ़ रही होती हैं। यह तकनीक शरीर के अंदर की गतिविधियों की एक सटीक तस्वीर प्रदान करती है, जिससे डॉक्टर बेहतर उपचार योजना बना सकते हैं।
आम जनता और छात्रों को जागरूक करना आवश्यक
नाभिकीय भौतिकी के इन महत्वपूर्ण पहलुओं और इसके सकारात्मक उपयोगों के बारे में आम जनता को जागरूक करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारे युवा छात्रों को भी यह जानकारी दी जानी चाहिए कि नाभिकीय भौतिकी सिर्फ खतरनाक नहीं है, बल्कि इसका उपयोग मानव कल्याण के लिए भी किया जाता है। यह शिक्षा पब्लिक एजुकेशन , लेक्चर्स और समूह बैठकों के माध्यम से दी जा सकती है, ताकि समाज में नाभिकीय विज्ञान के प्रति जागरूकता बढ़े और लोग इसके लाभों को समझ सकें।
इसलिए, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आम जनता और युवा छात्रों को नाभिकीय भौतिकी के महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों के बारे में सही जानकारी मिले। इस ज्ञान से न केवल नाभिकीय विज्ञान के प्रति मिथक (myths) दूर होंगे, बल्कि यह भी समझ में आएगा कि यह विज्ञान वास्तव में मानवता के लिए कार्य कर रहा है।
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